मन को अनोखा,ज्ञान मिला।
मिलकर तुमसे मुझको मुझमें
एक नया इंसान मिला।
रोके भी नहीं रुकती थी जो,
आज चलाए चलती हूँ।
जो तुम चाहते वही हूँ करती
जैसे कोई कठपुतली हूँ
माथे की तुम्हारी एक शिकन,
मन ऐसा झकझोरे क्यों...
होंठों की तुम्हारी एक हँसी
मानूँ जीवन की बडी खुशी
गलती भी तुम्हारी सिर्फ़ शरारत,
दुख अपना गर तुम्हें मुसीबत ।
दुनिया अपनी उजड सी जाती,
आँखों में दिखे गर थोड़ी नफरत ।
बेवशी सी कैसी छायी मुझमें
क्यों हर सुख-दुख देखूँ तुममें.....
कब चाहा ऐसे बन जाऊँँ,
जजबाती फिर कहलाऊँ।
प्रेम-दीवानी सी बनकर......
फिर विरह-व्यथा में पछताऊँ ।
जो तुम चाहते वही हूँ करती
जैसे कोई कठपुतली हूँ
माथे की तुम्हारी एक शिकन,
मन ऐसा झकझोरे क्यों...
होंठों की तुम्हारी एक हँसी
मानूँ जीवन की बडी खुशी
गलती भी तुम्हारी सिर्फ़ शरारत,
दुख अपना गर तुम्हें मुसीबत ।
दुनिया अपनी उजड सी जाती,
आँखों में दिखे गर थोड़ी नफरत ।
बेवशी सी कैसी छायी मुझमें
क्यों हर सुख-दुख देखूँ तुममें.....
कब चाहा ऐसे बन जाऊँँ,
जजबाती फिर कहलाऊँ।
प्रेम-दीवानी सी बनकर......
फिर विरह-व्यथा में पछताऊँ ।
9 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तहेदिल से धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचना को मुखरित मौन के मंच पर स्थान देने हेतु।
सादर आभार
गलती भी तुम्हारी सिर्फ़ शरारत,
दुख अपना गर तुम्हें मुसीबत ।
दुनिया अपनी उजड सी जाती,
आँखों में दिखे गर थोड़ी नफरत ।
कभी कभीजीवन में किसी के मिलने के बाद इन्सान सही अर्थों में खुद से मिलता है। नई शख्शियत का उदय होता है भीतर। मन के रुहानी एहसासों की प्रेमिल अभिव्यक्ति प्रिय सुधा जी। मन को छू गईं ये सुंदर रचना। यूं ही प्रेम राग रचती रहिए 👌👌🙏🌷🌷🌷
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रेणु जी!आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हमेशा रचना को सार्थकता प्रदान करती हैं।
अंतस से नि:सृत अनुराग के निश्छल आकुल भाव!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
आकुलन की व्याकुल भाषा
प्रेम सिक्त सुंदर रचना ।
प्रेम व्यथा के सुंदर भाव
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.कैलाश जी !
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