मंगलवार, 9 मई 2017

आस हैं और भी.....राह हैं और भी....

rainbow in sky

जब कभी अकेली सी लगी जिन्दगी,
 तन्हाई भी आकर जब सताने लगी ।
 आस-पास चहुँ ओर नजरें जो गयी,
 एक नयी सोच मन मेरे आने लगी।
देख ऐसी कला उस कलाकार की,
 भावना गीत बन गुनगनाने लगी ।


 मंजिल दूर थी रात छायी घनी,
चाँद-तारों से उम्मीद करने लगी
बादलों ने भी तब ही ठिठोली की
चाँद-तारे छुपे आँख-मिचौली की
घुप्प अंधेरे में डर जब सताने लगा
राह सूझी नहीं मन घबराने लगा
टिमटिमाते हुए जुगनू ने कहा ;
"आस बाकी अभी टूट जाओ नहीं
मुस्कुरा दो जरा ! रूठ जाओ नहीं
है बची रौशनी होसला तुम रखो !
दिख रही राह मंजिल तक तुम चलो !
आस हैंं और भी राह हैं औऱ भी",
इक नयी सोच तब मन में आने लगी !
देख ऐसी कला उस कलाकार की,
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी ।


करवटें जब बदलने लगी जिन्दगी
धोखे और नफरत से हुए रूबरू
फिर डरे देख जीवन का ये पहलू
विश्वास भी डगमगाने लगा
शब्द सीधे कहे अर्थ उल्टे हुये
हर कोशिश नाकामी दिखाने लगी
रुक गये हम जहाँ थे वहीं हारकर
तब जीने की चाहत भी जाने लगी
एक हवा प्रेम की सरसराते हुए
बिखरी जुल्फों को यूँ सहलाने लगी
देख ऐसी कला उस कलाकार की,
भावना गीत बन गुनगनाने लगी ।


है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा
यही सीख जब  अपनाने लगी
इक नयी सोच तब मन में आने लगी
देख ऐसी कला उस कलाकार की
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी ।





15 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना साझा करने के लिए...
सस्नेह आभार...।

Kamini Sinha ने कहा…

है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी

बहुत खूब...., सादर नमन

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद, कामिनी जी !
सस्नेह आभार।

Anuradha chauhan ने कहा…

एक हवा प्रेम की सरसराते हुए........
बिखरी जुल्फों को यूँ सहलाने लगी
*देख ऐसी कला उस कलाकार की,
भावना गीत बन गुनगनाने लगी.........
बेहतरीन रचना सखी

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना सोमवार 17 अक्टूबर 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

Meena Bhardwaj ने कहा…

है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
सकारात्मक भावों का संचार करती अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

जिंदगी कोई न कोई मार्ग चुन मुस्कराती रहे ।
सकारात्मक भाव से सजी सुंदर रचना।

उषा किरण ने कहा…

वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा...
बहुत खूब…👌👌

Sweta sinha ने कहा…

देख ऐसी कला उस कलाकार की,
भावना गीत बन गुनगनाने लगी ।
मन में आस और विश्वास भरती बेहद प्रेरक और सुंदर लेखन सुधा जी।
सस्नेह।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा...
सकारात्मक सोच दर्शाती बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।

रंजू भाटिया ने कहा…

बेहतरीन रचना ,पॉजिटिव सोच को बताती

मन की वीणा ने कहा…

आशा का एक दीप जीवन को आलोकित कर देता है, बस वो दीप जलाए रखना ही जीवन का सुधा तत्व है।
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी।
सकारात्मक सोच का दर्पण।

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

कविता के द्वितीय छन्द ने तो खूबसूरती की इन्तहा ही कर दी है। सच में बहुत सुन्दर लिख गई हैं आप! जुगनू के सन्दर्भ ने कविता की सुंदरता को पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया है। इस सुन्दर रचना के लिए बधाई सुधा जी!

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