तिस पर अनवरत बरसती
ये मुई बरसात
टपक रही मेरी झोपड़ी
की घास-फूस
भीगती सिकुड़ती
मिट्टी की दीवारें
जाने कब खत्म होगा
ये इन्तजार ?
कब होगी सुबह..?
और मिटेगा
ये घना अंधकार !
थम ही जायेगी किसी पल
फिर यह बरसात
तब चमकेंगी किरणें रवि की
खिलखिलाती गुनगुनी सी ।
सूख भी जायेंगी धीरे-धीरे
ये भीगी दीवारें
गुनगुनायेंगी गीत आशाओं के,
मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ ।
झूम उठेगी इसकी घास - फूस की छत
बहेगी जब मधुर बयार
फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम
फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम
यूँ पूनम का इंतज़ार !
जब घुप्प रात्रि में भी
चाँद की चाँदनी में
साफ नजर आयेगी
मेरी झोपड़ी, अपने अस्तित्व के साथ ।
चित्र - "साभार गूगल से"
6 टिप्पणियां:
बरसात में गरीबो की झोपड़ी में टपकते पानी से उन्हें कितनी तकलीफे होती है ये वो ही समझ सकते है। बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।
बहुत सुंदर भाव-प्रवण रचना।
तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!
सस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
सादर आभार।
जब झोपड़ी की छत न चुए तो पूनम है
सुंदर सृजन
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!
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