प्रेम
अपरिभाषित एहसास।
'स्व' की तिलांजली...
"मै" से मुक्ति !
सर्वस्व समर्पण भाव
निस्वार्थ,निश्छल
तो प्रेम क्या ?
बन्धन या मुक्ति !
प्रेम तो बस, शाश्वत भाव
एक सुखद एहसास !!
एहसास ?
"मै" से मुक्ति !
सर्वस्व समर्पण भाव
निस्वार्थ,निश्छल
तो प्रेम क्या ?
बन्धन या मुक्ति !
प्रेम तो बस, शाश्वत भाव
एक सुखद एहसास !!
एहसास ?
हाँ ! पर होता है..
दिल का दिल से
आत्मिक /अलौकिक
कहीं भी, कभी भी..
बिन सोचे, बिन समझे
एक अनुभूति , अलग सी
बहुत दूर..
दिल के बहुत पास,
टीस बनकर चुभ जाती है,
औऱ उस दर्द में आनन्द आता है,
औऱ उस दर्द में आनन्द आता है,
असीम आनन्द !
और चुभन ?
आँसू बनकर बहते आँखों से
आँसू बनकर बहते आँखों से
बस फिर
खो जाता मन
उसी प्रेम में आजीवन
और फिर
प्रेम के पार, प्रेमी का संसार
और फिर
प्रेम के पार, प्रेमी का संसार
आत्मिक मिलन
नहीं कोई सांसारिक बंधन
नहीं कोई सांसारिक बंधन
बंद आँखों में
पावन सा अपना मिलन
अनोखा,अजीब सा,
मनभावन, वह आलिंगन
जिसके साक्ष्य बनते
सुदूर आसमां में
सुदूर आसमां में
सूरज ,चाँद ,सितारे
क्षितिज पर
प्रेममय - धरा - आसमाँ
आसीस देते
प्रेममय - धरा - आसमाँ
आसीस देते
अनुपम सौन्दर्य से प्रकृति करती
प्रेम का प्रेम से
अभिनन्दन।।
अभिनन्दन।।
चित्र : गूगल से साभार