शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

इधर कुआँ तो उधर खायी है.....


 political leaders in a trap

अपने देश में तो आजकल चुनाव की
लहर सी आयी है।
पर ये क्या ! मतादाताओं के चेहरे पर तो
गहरी उदासीनता ही छायी है ।
करें भी क्या, हमेशा से मतदान के बाद
जनता देश की बहुत पछतायी है ।
इस बार जायेंं तो जायें भी कहाँँ
इधर कुआँ तो उधर खायी है ।

चन्द सफलताओं के बाद ही भा.ज.पा में तो
जाने कैसी अकड़ सी आयी है ।
अपने "पी.एम" जी तो बस बाहर ही छपलाये
देश को भीतर से तो दीमक खायी है ।
बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी और मंहगाई में
रत्ती भर भी कमी नहीं आयी है ।
शिशिर की ठण्ड से ठिठुरकर मरते गरीब
जाने कहाँ सरकार ने कम्बल बँटवायी हैं ?
इस बार जायें तो जायें भी कहाँ
इधर कुआँँ तो उधर खायी है ।

कॉंग्रेस की जी-तोड़, कमर-कस मेहनत
शायद रंग ले भी आयेगी ।
मुफ्त ये,मुफ्त वो, मुफ्त सो,का लालच देकर
शायद बहुमत पा भी जायेगी ।
जरूरत, लालच,या मजबूरी (जो भी कहो)
बेचकर अपने बेसकीमती मत को
फिर नये नेता के बचकानेपन पर
सारी जनता सिर धुन-धुनकर पछतायेगी ।

रुको ! देखो !समझो ! परखो ! फिर सही चुनो !
लिखने में मेरी तो लेखनी भी कसमसाई है ।
हमेशा से यहाँ यूँ ही ठगी गयी जनता
राजनीति ने अपनी इतिहास दोहराई है ।
अब जायें तो जायें भी कहाँ
इधर कुआँ तो उधर खायी है ।




                               चित्र;साभार गूगल से...

बुधवार, 21 नवंबर 2018

सपने जो आधे-अधूरे



half moon indicating broken dreams

कुछ सपने जो आधे -अधूरे
यत्र-तत्र बिखरे मन में यूँ
जाने कब होंगे पूरे .....?
मेरे सपने जो आधे -अधूरे
   
       दिन ढ़लने को आया देखो
       सांझ सामने आयी.....
       सुबह के सपने ने जाने क्यूँ
       ली मन में अंगड़ाई......

बोला; भरोसा था तुम पे
तुम मुझे करोगे पूरा.....
देख हौसला लगा था ऐसा
कि छोड़ न दोगे अधूरा....

          डूबती आँखें हताशा लिए
          फिर वही झूठी दिलाशा लिए
          चंद साँसों की आशाओं संग
          वह चुप फिर से सोया......
          देख दुखी अपने सपने को
          मन मेरा फिर-फिर रोया.....

सहलाने को प्यार से उसको
जो अपना हाथ बढ़ाया....
ढ़ेरों अधूरे सपनों की फिर
गर्त में खुद को पाया......

         हर पल नित नव मौसम में
         सपने जो मन में सजाये.....
        अधूरेपन के दुःख से दुखी वे
        कराहते ही पाये.....
   
गुनाहगार हूँ इन सपनों के
जिनको है छोड़ा अधूरा....
वक्त हाथों से निकला है जाता
करूँ कैसे अब इनको पूरा.........?
 
        लोगों की नजर में सफल हुए हम
        कि मंजिल भी हमने है पायी.......
        बड़े भागवाले हो कहती है दुनिया
        कि मेहनत जो यूँ रंग लायी.......

सपने अधूरे तो अरमां अधूरे
मन में है बस तन्हाई.....
मन खुश हो कैसे कुछ पाने पर
उन सपनोंं का जो शैदाई.....
   
         कुछ सपने जो आधे-अधूरे
         जाने कब होंगे पूरे.......?

       चित्र : साभार  गूगल से....

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

....रवि शशि दोनों भाई-भाई.......

Mother with her sons

स्कूल की छुट्टियां और बच्चों का आपस में
लड़ना झगड़ना.....
फिर शिकायत.... बड़ों की डाँट - डपट......
पल में एक हो जाना....अगले ही पल रूठना...
माँ का उन्हें अलग-अलग करना...
तो एक-दूसरे के पास जाने के दसों बहाने ढूँढ़ना....
न मिल पाने पर एक दूसरे के लिए तड़पना....
     
तब माँ ने सोचा---
यही सजा है सही, इसी पर कुछ इनको मैं बताऊँ,
दोनोंं फिर न लड़ें आपस में,ऐसा कुछ समझाऊँ...

दोनोंं को पास बुलाकर बोली....
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ एक अजब कहानी,
ना कोई था राजा जिसमें ना थी कोई रानी...

बच्चे बोले--तो फिर घोड़े हाथी थे...?
                 या हम जैसे साथी थे....!!

माँ बोली---हाँ ! साथी थे वे तुम जैसे ही
                 रोज झगड़ते थे ऐसे ही......

अच्छा!!!... कौन थे वे ?..
  
  ...."रवि और शशि"...
रवि शशि दोनों भाई-भाई
खूब झगड़ते  थे लरिकाई
रोज रोज के शिकवे सुनकर
तंग आ गयी उनकी माई......

एक कर्मपथ ता पर विपरीत मत
झगड़ेंगे यूँ ही तो होगी जगहँसाई
     भाई भाई के झगड़ों से
   चिंताकुल थी उनकी माई!!!!

  बहुत सूझ-बूझ संग माँ ने,
  युक्ति अनोखी तब लगाई!!!
एक ही कर्मपथ, वक्त विलग कर
  माँ ने समता भी निभाई।

🌙शशि निशा संग चमके चन्द्र बन🌜
   🌞रवि दिवाकर कहलाये🌞
   सदैव के लिए बिछड़े तब दोनों
      दण्डित कर माँ ने समझाये।।

यूँ न लड़ो तुम कहा था तुमसे,
फिर भी तुम जो नहीं माने.....
भ्रातृ विरह का दुख है कैसा,
  विलग हुए तब तो जाने...

भ्रातृ विरह में दुखित हुए शशि
 गुमसुम कभी छुप जाते हैं....
रवि भी भ्रातृ मिलन को तरसे
 शीत में मलीन हो जाते हैं.....

      अच्छा ....!!!!
इसी वजह से चंदा मामा
कभी-कभी नहीं आते हैंं....
घुप्प अंधेरे नभ में कुछ दिन
बस तारे टिमटिमाते हैंं.......
और सूरज दादा दुखी, खिन्न,
कभी दीन, नरम हो जाते हैं,
ठिठुर-ठिठुर सर्दी में जब,
हम  धूप ढूँढने जाते हैं.......।

माँ ! हम ज्यादा न लडेंगे अब से
हमको यूँ न सजा देना....
साथ रहेंगे हम जीवन भर,
हमें  दूर नहीं कर देना.....

           




            चित्र ;साभार गूगल से...

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

वृद्ध होती माँ


Old mother with her daughter


सलवटें चेहरे पे बढती ,मन मेरा सिकुड़ा रही है
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं।

देर रातों जागकर जो घर-बार सब सँवारती थी,
*बीणा*आते जाग जाती , नींद को दुत्कारती थी ।
शिथिल तन बिसरा सा मन है,नींद उनको भा रही है,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं ।

हौसला रखकर जिन्होंने हर मुसीबत पार कर ली ,
अपने ही दम पर हमेशा, हम सब की नैया पार कर दी ।
अब तो छोटी मुश्किलों से वे बहुत घबरा रही हैं,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं ।

सुनहरे भविष्य के सपने सदा हमको दिखाती ,
टूटे-रूठे, हारे जब हम, प्यार से उत्साह जगाती ।
अतीती यादों में खोकर,आज कुछ भरमा रही हैं ,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं ।

                                 
                              चित्र : साभार गूगल से..



(*बीणा* -- भोर का तारा)


माँ पर मेरी एक और कविता
माँ ! तुम सचमुच देवी हो



                             

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

जानी ऐसी कला उस कलाकार की....


 women praying

कुछ उलझने ऐसे उलझा गयी
असमंजस के भाव जगाकर
बुरी तरह मन भटका गयी,
जब सहा न गया, मन व्यथित हो उठा
आस भी आखिरी सांस लेने लगी
जिन्दगी जंग है हार ही हार है
नाउम्मीदी ही मन में गहराने लगी
पल दो पल भी युगों सा तब लगने लगा
कैसे ये पल गुजारें ! दिल तड़पने लगा
थक गये हारकर , याद प्रभु को किया
हार या जीत सब श्रेय उनको दिया
मन के अन्दर से "मै" ज्यों ही जाने लगा
एक दिया जैसे तम को हराने लगा
बन्द आँखों से बहती जो अश्रुधार थी
सूखती सी वो महसूस होने लगी
नम से चेहरे पे कुछ गुनगुना सा लगा
कुछ खुली आँख उजला सा दिखने लगा
उम्मीदों की वो पहली किरण खुशनुमा
नाउम्मीदी के बादल छटाने लगी
आस में साँस लौटी और विश्वास भी
जीने की आस तब मन में आने लगी
जब ये जानी कला उस कलाकार की
इक नयी सोच मन में समाने लगी
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी....

गहरा सा तिमिर जब दिखे जिन्दगी में
तब ये माने कि अब भोर भी पास है
दुख के साये बरसते है सुख बन यहाँ
जब ये जाने कि रौशन हुई आस है
रात कितनी भी घनी बीत ही जायेगी
नयी उजली सुबह सारे सुख लायेगी
जब ये उम्मीद मन में जगाने लगी
हुई आसान जीवन की हर इक डगर
जब से भय छोड़ गुण उसके गाने लगी
इक नयी सोच मन में समाने लगी
जानी ऐसी कला उस कलाकार की
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी......


                         चित्र ;साभार गूगल से-

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

वह प्रेम निभाया करता था....


Flower in Rain

एक कली जब खिलने को थी,
तब से ही निहारा करता था।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
वह प्रेम निभाया करता था ।

दीवाना सा वह भ्रमर, पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

कली खिली फिर फूल बनी,
खुशबू महकी फ़िज़ा में मिली।
फ़िज़ा में महकी खुशबू से ही
कुछ खुशियाँ चुराया करता था।
वह दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
बस प्रेम निभाया करता था

फूल की सुन्दरता को देख
सारे चमन में बहार आयी।
आते जाते हर मन को ,
महक थी इसकी अति भायी।
जाने कितनी बुरी नजर से
इसको बचाया करता था ।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा, 
वह प्रहरी बन जाया करता था ।

फूल ने समझा प्रेम भ्रमर का,
चाहा कि अब वो करीब आये।
हाथ मेरा वो थाम ले आकर,
प्रीत अमर वो कर जाये।
डरता था छूकर बिखर न जाये,
बस  दिल में बसाया करता था ।
दीवाना सा वह भ्रमर पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

एक वनमाली हक से आकर,
फूल उठा कर चला गया ।
उसके बहारों भरे चमन में,
काँटे बिछाकर चला गया ।
तब विरही मन यादों के सहारे,
जीवन बिताया करता था ।
दूर वहीं क्षितिज में खड़ा,
वह आँसू बहाया करता था ।

दीवाना था वह भ्रमर पुष्प पे,
जान लुटाया करता था.......
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा,
बस प्रेम निभाया करता था।

                 चित्र; साभार गूगल से...

शुक्रवार, 25 मई 2018

ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया

Many sparrows sitting on the edge of a container having water

सुबह की ताजी हवा थी महकी
कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी....
घर के आँगन में छोटी सी सोनल
अलसाई आँखें खोल रही थी....
चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां
सोनल के निकट आई......
सूखी चोंच उदास थी आँखें
धीरे से वे फुसफुसाई....
सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ?
छत पर थोड़ा नीर रखोगी ?

बढ़ रही अब तपिश धरा पर,
सूख गये हैं सब नदी-नाले
प्यासे हैं पानी को तरसते,
हम अम्बर में उड़ने वाले.....
तुम पंखे ,कूलर, ए.सी. में रहते
हम सूरज दादा का गुस्सा सहते
झुलस रहे हैं, हमें बचालो !
छत पर थोड़ा पानी तो डालो !!
जेठ जो आया तपिश बढ गयी
बिन पानी प्यासी हम रह गयी....

सुनकर सोनल को तरस आ गया
चिड़ियों का दुख दिल में छा गया
अब सोनल सुबह सवेरे उठकर
चौड़े बर्तन में पानी भरकर,
साथ में दाना छत पर रखती है....
चिड़ियों का दुख कम करती है ।

मित्रों से भी विनय करती सोनल
आप भी रखना छत पर थोड़ा जल ।।



चित्र: साभार गूगल से...










शनिवार, 19 मई 2018

पेड़-- पर्यावरण संतुलन की इकाई


woodcutter cutting a tree

हम अचल, मूक ही सही मगर
तेरा जीवन निर्भर है हम पर
तू भूल गया अपनी ही जरूरत
हम बिन तेरा जीवन नश्वर

तेरी दुनिया का अस्तित्व हैं हम
हम पर ही हाथ उठाता है,
आदम तू भूला जाता है
हम संग खुद को ही मिटाता है

अपना आवास बनाने को
तू पेड़ काटता जाता है
परिन्दोंं के नीड़ों को तोड़
तू अपनी खुशी  मनाता है

बस बहुत हुआ ताण्डव तेरा
अबकी तो अपनी बारी है
हम पेड़ भले ही अचल,अबुलन
हम बिन ये सृष्टि अधूरी है

वन-उपवन मिटाकर,बंगले सजा
सुख शान्ति कहाँ से लायेगा
साँसों में तेरे प्राण निहित तो
प्राणवायु कहाँ से पायेगा.....

चींटी से लेकर हाथी तक
आश्रित हैं हम पर ही सब
तू पुनः विचार ले आदम हम बिन
पर्यावरण संतुलित नहीं रह पायेगा ।


शनिवार, 5 मई 2018

सुख का कोई इंतजार....


women working at construction site with her little son
                       चित्र :साभार गूगल से"

मेरे घर के ठीक सामने
बन रहा है एक नया घर
वहीं आती वह मजदूरन
हर रोज काम पर.....
देख उसे मन प्रश्न करता
मुझ से बार-बार......
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार...?

गोद में नन्हा बच्चा
फिर से है वह जच्चा
सिर पर ईंटों का भार
न सुख न सुविधा ऐसे में
दिखती बड़ी लाचार....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इन्तजार...?


बोझ तन से ढो रही वह
मन से बच्चे का ध्यान
पल-पल में होता उसको
उसकी भूख-प्यास का भान...
छाँव बिठाकर सिर सहलाकर
देती है माँ का प्यार...
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इन्तजार....?

जब सब सुस्ताते,थकान मिटाते
वह बच्चे पर प्यार लुटाती
बड़ी मुश्किल से बैठ जतन से
गोदी मेंं अपना बच्चा सुलाती
ना कोई शिकवा इसे अपने रब से
ना ही कोई गिला इसे किस्मत से
जो है उसी में जीती जाती...
अचरज होता देख के उसको
मुझको तो बार-बार......
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार...?

लगता है खुद की न परवाह उसको
वो माँ है सुख की नहीं चाह उसको
संतान सुख ही चरम सुख है उसका
उसे पालना ही अब कर्तव्य उसका
न मानेगी किस्मत से हार.....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार.......।






शनिवार, 21 अप्रैल 2018

हौले से कदम बढ़ाए जा...


mother holding her daughter


अस्मत से खेलती दुनिया में
चुप छुप अस्तित्व बनाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाये जा.....

छोड़ दे अपनी ओढ़नी चुनरी,
लाज शरम को ताक लगा
बेटोंं सा वसन पहनाऊँ तुझको
कोणों को अपने छुपाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा....

छोड़ दे बिंंदिया चूड़ी कंगना
अखाड़ा बनाऊँ अब घर का अँगना
कोमल नाजुक हाथों में अब 
अस्त्र-शस्त्र पहनाए जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

तब तक छुप-छुप चल मेरी लाडो
जब तक तुझमेंं शक्ति न आये
आँखों से बरसे न जब तक शोले
किलकारी से दुश्मन न थरथराये
हर इक जतन से शक्ति बढ़ाकर
फिर तू रूप दिखाए जा...
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढाए जा....।।

रक्तबीज की इस दुनिया में
रक्तपान कर शक्ति बढ़ा
चण्ड-मुण्ड भी पनप न पायेंं
ऐसी लीला-खेल रचा  
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

रणचण्डी दुर्गा बन काली
ब्रह्माणी,इन्द्राणी, शिवा....
अब अम्बे के रूपोंं में आकर 
डरी सी धरा का डर तू भगा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा...।




               चित्र : साभार pinterest से...

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

लावारिस : "टाइगर तो क्या आज कुत्ता भी न रहा"



two different breed dogs having conversation


हैलो शेरू ! बडे़ दिनों बाद दिखाई दिया,कहाँ व्यस्त था यार ! आजकल ?  (डॉगी टाइगर ने डॉगी शेरू के पास जाकर बड़ी आत्मीयता से पूछा) तो शेरू खिसियाते हुए पीछे हटा और बुदबुदाते हुए बोला; ओह्हो!फँस गया...
अरे यार !  परे हट !  मालकिन ने देख लिया तो मेरी खैर नहीं ,  यूँ गली के कुत्तों से मेरा बात करना मालकिन को बिल्कुल नहीं भाता ,  मेरी बैण्ड बजवायेगा क्या ?..

टाइगर  -  "अरे शेरू! मैं कोई गली का कुत्ता नहीं ! अबे यार ! तूने मुझे पहचाना नहीं  ?  मैं 'टाइगर' तेरे मालिक के दोस्त वर्मा जी का टाइगर !

शेरू (आश्चर्य चकित होकर) -- टाइगर ! अरे ! ये तेरी क्या दशा हो गयी है यार !  कितना कमजोर हो गया है तू  !  मैं तो क्या तुझे तो कोई भी नहीं पहचान पायेगा ।क्या हुआ यार ! बीमार है क्या ?  इलाज-विलाज नहीं करवाया क्या तेरे मालिक ने ?  डींगें तो बड़ी-बड़ी हांकता है तेरा मालिक !  ओह ! माफ करना यार ! अपने मालिक के बारे में सुनकर गुस्सा आ रहा होगा,  हैं न !  मुझे भी आता है  , क्या करे ? वफादार प्राणी जो होते हैं हम कुत्ते... हैं न  ?..

टाइगर -  (पूँछ हिलाते हुए ) सही कहा यार तूने ! वफादार होते हैं हम कुत्ते । पर वफादार सिर्फ हम कुत्ते ही होते हैं यार !  ये मालिक तो सिर्फ मालिक होते हैं , वो भी हृदयहीन....(मुँह फेरते हुए) ।

शेरू - (आश्चर्य चकित होक) 🎂अरे ! टाइगर ! आज तू भी मालिकों के बारे में ऐसा बोल रहा है ?....  कुत्ते वाली वफादारी छोड़ना चाहता है क्या ? हैं हैं...(हँसते हुए)
मेरा मतलब मैं तो पहले से ही थोड़ा भड़बोला टाइप का ठहरा पर तू तो शरीफों में आता है। हैं न !  (टाइगर की तरफ देखते हुए मजाकिया अंदाज में)

टाइगर--(उदास होकर) अरे नहीं यार शेरू! शरीफ-वरीफ तो छोड़ , ये बता मैं क्या करूँ ? बहुत परेशान हूँ यार ! अब तुझसे क्या छुपाऊँ. , यार मेरी तो दशा ही खराब है । आज मैं टाइगर तो क्या कुत्ता भी न रहा यार !  बहुत बुरे हालात हैं यार मेरे !

(शेरू कुछ कहता तभी उसकी मालकिन की आवाज सुनाई दी )--- शेरू ! शेरू ! आवाज सुनकर शेरू हड़बड़ाकर बोला ; यार भाई टाइगर ! मालकिन बुला रही है ,जाना पडे़गा यार ! थोड़ी देर की तो मेरी खैर नहीं ।  आजकल मेरी मालकिन को गुस्सा बहुत आता है,जब से उन्हे बी.पी.की बिमारी हुई बड़ी चिड़चिड़ी सी हो गयी हैं,मुझे तो क्या अपने बच्चों को भी नहीं बक्शती ।
कल सुबह मिलते हैं यार सामने वाले पार्क में,  मेरे मालिक मुझे लेकर घूमने आते हैं वहीं आना, ठीक है न ।

टाइगर - (अनमने से) ठीक है,मैं इन्तज़ार करुंगा।
(फिर दोनों ने बड़ी आत्मीयता से दुम हिलायी और शेरू दुम दबाके भागा)

सुबह-सुबह  शेरू अपने मालिक के साथ पार्क पहुंचा, मालिक ने शेरू के गले से पट्टा खोल दिया, और खुद भी पार्क में सैर करने लगा।

सामने बैंच के नीचे से टाइगर को निकलता देख शेरू बोला "हैलो टाइगर ! कमाल है! तू तो मुझसे पहले ही पहुँच गया"! ?

टाइगर (दुखी होकर)--  पहुँचना कहाँ से यार ?  मैं तो यहीं था रात भर ।

शेरू -- (आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए)-- यहीं था ! मतलब ? घर पर नहीं था ? क्या हुआ टाइगर ! तेरे मालिक ने तुझे घर से निकाल दिया क्या ?

टाइगर - (दुखी होकर) हाँ यार ! उन्होंने मुझे त्याग दिया।उनका तबादला हो गया दूसरे शहर मे । वहाँ वे मुझे नहीं ले गये  (अपने आगे के पंजे फैलाकर सिर पंजों में टिकाते हुए) क्या करूँ यार! मैं तो लावारिस और बेघर हो गया हूँ । (कहते हुए उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े) ।

 शेरू - (बहुत दुखी होकर उसके करीब जाते हुए)-- ओह ! ये तो बड़े दुख की बात है ! समझ नहीं आ रहा तेरे मालिक ने ऐसा क्यों किया  ?  वैसे तो बड़ी परवाह करता था वो तेरी, ओह्हो !  फिर अब क्या कर रहा है तू ? कहाँ रहता है ? किसी पड़ौसी ने पनाह दी क्या ?

टाइगर-- नहीं यार ! कोई पूछता भी नहीं ,बची-खुची रोटी ऐसे फैंकते हैं जैसे गली के आवारा कुत्तों के लिए फैंक रहे होंगे, साथ में न दूध न कुछ और ।  अब गली के कुत्तों सी आदत तो है नहीं अपनी, कि जो मिले सो खा लूँ,   सूखी रोटी गले से कहाँ उतरती है ।  बुरा हाल है यार !

शेरू - (सहानुभूति के साथ जीभ से उसे चाटते हुए) --शिकार-विकार कुछ कर यार ! जीने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा ! है,न । तेरी गली में चूहे, बिल्ली तो खूब हैं । दबोच लिया कर !

टाइगर --  क्या बताऊँ शेरू मेरे मालिक तो शाकाहारी थे, उनके साथ रहकर  मैं भी शाकाहारी हो गया , इन चूहे बिल्लियों पर तो मुझे बहुत ही दया आती है, अब ये सब कैसे ?

शेरू -- ओह ! यार क्या होगा तेरा ? मुझे तेरे लिए बहुत दुख हो रहा है।

टाइगर --  (दुखी होकर) क्या करूँ यार ! हमेशा टाइगर बनकर खूब भौंका मैं गली के तमाम कुत्तों पर,
मेरी गली में तो एक भी आवारा कुत्ता नहीं आ पाता था मेरे डर से । ये देख न ! इंसानों के साथ रहकर उन्हीं की भाषा बोल रहा हूँ । अपनी ही जाति को आवारा कह रहा हूँ,आज वे ही कुत्ते शेर बनकर मुझ पर भौंक रहे हैं,और  मैं उनसे डर रहा हूँ, क्या करूँ ? अब उन्हींं की टीम में जाना चाहता हूँ पर उन्हें तो मुझसे बहुत चिढ़ है ।नहींं शामिल कर रहे हैं वे मुझे अपनी टीम में । गलती मेरी ही थी इन्सानों के बल पर अपनी जाति से दुश्मनी जो मोल ली । देख न आज कितना तन्हा हो गया हूँ ,मालिक और उनके बच्चों की बहुत याद आती है ,उन्होंने तो कितनी जल्दी मुझे भुला दिया, (क्यांऊं-क्यांऊं  करते हुए टाइगर बुरी तरह रोने लगा)।

शेरू-- (अपना एक पंजा उठाकर टाइगर की गरदन पर रखकर अपनी लम्बी पतली जीभ से उसे चाटते हुए) ---हाँ यार ! कैसे भुला दिया उन्होंने तुझे ! एक बार भी नहीं सोचा कि उनके बाद तेरा क्या होगा ? पर तू चुप हो जा /सब ठीक हो जायेगा.। भगवान पर भरोसा रख अब वे ही कुछ करेंगे।

 टाइगर--  हाँ यार ठीक कहा तूने अब भगवान ही कुछ करेंगे ।  ये इन्सान तो भरोसे के काबिल ही नहीं हैं
बड़े स्वार्थी होते हैं , भाई-बहनो से मुँह मोड़ देते हैं ,बूढे माँ-बाप को छोड़ देते हैं.।
जब इन्सान इन्सान का ही नहीं होता तो हम कुत्तों का क्या होगा ?....हमें तो अपने बड़प्पन और शौक के लिए पालते हैं ये ।(मुँह बिचकाते हुए)

शेरू--   बिल्कुल ठीक कह रहा है टाइगर तू ....पहले तो ये लोग हमसे घर की रखवाली की उम्मीद करते थे,
अब तो उसकी भी जरूरत नहीं रही...जगह-जगह पुलिस-चौकी, सड़कों पर ,  गली-गली में या फिर घर-घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं । धन भी बैंक में जमा ः कौन चोर आयेगा ? और कैसे आयेगा ? क्या लेके जायेगा ? भला अब हमारी क्या जरूरत ?......
हमें तो शौक और बड़प्पन के लिए पाल रहे हैं ये मालिक ।  अपनी सहूलियत के हिसाब से रख लिया
जब मन न हो तो छोड़ दिय.हम ही हैं जो मालिक और उनके परिवार से दिल लगा बैठते हैं उन्हें अपना समझ लेते है ।

तभी मालिक की आवाज आती है शेरू ! शेरू !
ओह ! यार टाइगर ! क्या करूँ जाना पड़ेगा .बहुत बुरा लग रहा है तेरे लिए...। (दुम हिलाते हुए)
अपना ख्याल रखना यार ! गली के कुत्तों से मेल-मिलाप बढ़ाने की कोशिश करना ।उनसे मिलकर बाहर के माहौल में जीने के तरीके सीखना । अकेले कैसे रहेगा..? है न ।

टाइगर --  (अपने पंजों से आँसू पौंछते हुए)  ठीक है शेरू ! तूने मेरा दुख बाँटा शुक्रिया !अब तू जा अलविदा !
शेरू भी अलविदा कहकर मालिक के पास जाकर उसके पैर सूंघने लगता है, मालिक उसके गले में पट्टा डाल कर उसे ले जाता है ।
टाइगर वहीं खड़ा- खड़ा सोचता है जब पहली बार ये पट्टा पहना था तो  कितना बुरा लगा था, सोचता था कब आजादी मिलेगी इस पट्टे से ,आज तरस रहा हूँ इस पट्टे के लिए । इस पट्टे के बिना लावारिस जो हो गया हूँ।



                                    चित्र:साभार गूगल से.....





शनिवार, 7 अप्रैल 2018

अधूरी उड़ान


girl tied with ropes(expressing helplessness of a women not being able to fulfill her dreams)

एक थी परी
हौसला और उम्मीदों
के मजबूत पंखों से
उड़ने को बेताब
कर जमाने से बगावत
पढ़कर जीते कई खिताब
विद्यालय भी था सुदूर
पैदल चलती रोज मीलों दूर
अकेले भी निर्भय होकर
वीरान जंगली,ऊबड़-खाबड़
पहाड़ी राहों पर
खूंखार जंगली जानवर भी
जैसे साथी बन गये थे उसके
हर विघ्न और बाधाएं
जैसे हार गयी थी उससे
कदम कदम की सफलता पाकर
पंख उसके मजबूत बन गये
उड़ान की प्रकिया के लिए
पायी डिग्रियां सबूत बन गये
एक अनोखा व्यक्तित्व लिए
आत्मविश्वास से भरपूर
बढ़ रही थी अनवरत आगे
कि मंजिल अब नहीं सुदूर
तभी अचानक कदम उसके
उलझकर जमीं पर लुढ़क गये
सम्भलकर देखा उसने हाय!
आँखों से आँसू छलक गये
आरक्षण रूपी बेड़ियों ने
जकड़ लिए थे बढ़ते कदम
उड़ान भरने को आतुर पंखों ने
फड़फड़ तड़प कर तोड़ा दम।।





               चित्र;साभार गूगल से...

शनिवार, 31 मार्च 2018

"तन्हाई रास आने लगी"



girl taking selfie
वो तो पुरानी बातें थी
जब हम......
अकेलेपन से डरते थे
कोई न कोई साथ रहे
ऐसा सोचा करते थे
कभी तन्हा हुए तो 
टीवी चलाते,
रेडियो बजाते...
फिर भी चैन न आये तो
फोन करते,
दोस्तों को बुलाते.....
जाने क्यों तन्हाई से डरते थे
पर जब से मिले तुम..!!!
सब बदल सा गया,
बस तेरे ख्यालों में...
मन अटक सा गया..!!!
अब कोई साथ हो ,
तो वह खलता है
मन में बस तेरा ही
सपना पलता है...
सपनीली दुनिया में 
ख्वावों की मन्जिल है
उसमें हम तुम रहते
फिर तन्हा किसको कहते ?
अब तो घर के उस कोने में
मन अपना लगता है,
जहाँ न आये कोई बाधा 
ख्यालों में न हो खलल 
बस मैं और तुम.....
मेरे प्यारे मोबाइल!!!
आ तेरी नजर उतारूँ
अब तुझ पर ही मैं
अपना हर पल वारूँ.....
जब से तुझसे मन लगाने लगी
तब से....सच में.....
तन्हाई रास आने लगी......।
अब तो .......
कहाँ हैं...कैसे हैं ....कोई साथ है.....
कोई फर्क नहीं पड़ता....
रास्ता भटक गये!!!
तो भी नहीं कोई चिन्ता
बस तू और ये इन्टरनैट
साथ रहे ......
तो समझो सब कुछ सैट
अब तो बस .…......
तुझ पर ही मन लगाने लगी,
तब से..........सच में........
तन्हाई रास आने लगी......!!!!

गुरुवार, 22 मार्च 2018

सुख-दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो....



Indian Goddess(Mata)


जाने क्या मुझसे खता हो गयी ?
यूँ लग रहा माँ खफा हो गई...
माँ की कृपा बिन जीवन में मेरी
देखो तो क्या दुर्दशा हो गयी......

माँ! माफ कर दो, अब मान जाओ
इक बार मुझ पर कृपा तो बनाओ
कृपा बिन तो मेरी उजड़ी सी दुनिया
माँ ! बर्बाद होने से मुझको बचाओ.....

माँ! तेरे आँचल के साया तले तो
चिलमिलाती लू भी मुझे छू न पायी
तेरी ओट रहकर तो तूफान से भी,
निडर हो के माँ मैंने नजरें मिलाई.....

तेरे साथ बिन मेरा,  मन डर रहा माँ !
तन्हा सा जीवन, भय लग रहा माँ !
दिव्य ज्योति से मन के अंधेरे मिटा दो,
शरण में हूँ माँ मैं ,चरण में जगह दो......

ना मैं जोग जानूँ न ही तप मैं जानूँ
नियम भी न जानूँ, न संयम मैं जानूँ
पाप-पुण्य हैं क्या, धर्म-कर्म कैसे ?
सुख -दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो....

गुमराह हूँ मैंं, माँ सही राह ला दो,
भंवर में है नैया, पार माँ लगा दो...
तुम बिन नहीं मेरा,कोई सहारा माँ
मूरख हूँ, अवगुण मेरे तुम भुला दो...

खता माफ कर दो,माँ मान जाओ,
विश्वास भक्ति का, मेरे मन में जगाओ....
भंवर में है नैया, पार माँ लगा लो...
सुख-दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो...


                        चित्र: साभार गूगल से...

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ....


hello spring

                     चित्र : साभार Shutterstock से



ऐ रितुराज वसंत ! तुम तो बहुत खुशनुमा हो न !!!
आते ही धरा में रंगीनियां जो बिखेर देते हो !
बिसरकर बीती सारी आपदाएं 
खिलती -मुस्कराती है प्रकृति, मन बदल देते हो,
सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।

हैं जो दुखियारे, जीते मारे -मारे
कुछ उनकी भी सुन लो, कुछ दुख तुम ही हर लो,
पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तेरे रंगीन नजारे, आँखों को तो भाते हैं ।
पर  लब ज्यों ही खिलते हैं, आँसू भी टपक जाते हैं,
अधरों की रूठी मुस्कानो को हंसने की वजह दे दो !
ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तेरी ये शीतल बयार, जख्मों को न भाती है
भूले बिसरे घावों की,पपड़ी उड़ जाती है,
उन घावों पर मलने को, कोई मलहम दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तरसते है जो भूखे, दो जून की रोटी को
मधुमास आये या जाये, क्या जाने वे तुझको,
आने वाले कल की,उम्मीद नयी दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी,  शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को,  एहसास मधुर दे दो !
ऐ वसंत !  तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

खिल जायेंं अब सब चेहरे, हट जायें दुख के पहरे
सब राग - बसंती गायें, हर्षित मन सब मुस्कुराएं,
आये अमन-चैन की बहारें, निर्भय जीवन कर दो 
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।



पढ़िए बसंत ऋतु पर दोहे

रविवार, 11 मार्च 2018

इम्तिहान - "जिन्दगी का "





book with many question mark signs

उम्मीदें जब टूट कर बिखर जाती है,
अरमान दम तोड़ते यूँ ही अंधेरों में ।
कंटीली राहों पर आगे बढ़े तो कैसे ?
शून्य पर सारी आशाएं सिमट जाती हैं ।

विश्वास भी स्वयं से खो जाता है,
निराशा के अंधेरे में मन भटकता है।
जायें तो कहाँ  लगे हर छोर बेगाना सा ,
जिन्दगी भी तब स्वयं से रूठ जाती है।

तरसती निगाहें  सहारे की तलाश में ,
आकर सम्भाले कोई ऐसा अजीज चाहते हैं ।
कौन वक्त गँवाता है , टूटे को जोड़ने में
बेरुखी अपनों की और भी तन्हा कर जाती है ।

बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
कोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।

उस पल जो बाँध लें, खुद को अपने में
इक ज्योत नजर आती मन के अँधेरे में....
हौसला रखकर मन में जो आशा जगाते हैं,
इक नया अध्याय तब जीवन में पाते हैं ।।


               


चित्र : साभार Shutterstock से...






मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

धरा तुम महकी-महकी बहकी-बहकी सी हो




beautiful sunset landscape showing mountains and trees

फूलों की पंखुड़ियों से
धरा तुम यूँ मखमली हो गयी
महकती बासंती खुशबू संग
शीतल बयार हौले से बही
खुशियों की सौगात लिए तुम
अति प्रसन्न सी हो ।
धरा तुम महकी - महकी बहकी - बहकी सी हो !

सुमधुर सरगम गुनगुनाती
धानी चुनरी सतरंगी फूलों कढ़ी
हौले-हौले से सरसराती,
नवोढ़ा सा सोलह श्रृंगार किये
आज खिली - खिली सजी-धजी सी हो ।
धरा तुम महकी - महकी बहकी-बहकी सी हो !

कोई बदरी संदेशा ले के आई  क्या ?
आसमां ने प्रेम-पाती भिजवाई क्या ?
प्रेम रंग में भीगी भीगी
आज मदहोश सी हो ।
धरा तुम महकी-महकी बहकी - बहकी सी हो !

मिलन की ऋतु आई
धरा धानी चुनरीओढे मुख छुपाकर यूँ लजाई ,
नव - नवेली सुमुखि जैसे सकुचि बैठी मुँह दिखाई
आसमां से मिलन के पल "हाल ए दिल" तुम कह भी पायी ?
आज इतनी खोई खोई सी हो ।
धरा तुम महकी - महकी बहकी - बहकी सी हो !

चाँद भी रात सुनहरी आभा लिए था ।
चाँदनी लिबास से अब ऊब गया क्या ?
तुम्हारे पास बहुत पास उतर आया ऐसे ,
सगुन का संदेश ले के आया जैसे
सुनहरी चाँदनी से तुम नहायी रात भर क्या ?
ऐसे निखरी और निखरी सी हो ।
धरा तुम महकी-महकी बहकी-बहकी सी हो !

                                चित्र : साभार Pinterest से ..

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

"अब इसमें क्या अच्छा है ?...



cute question mark greeting with a smile


जो भी होता है अच्छे के लिए होता है
     जो हो गया अच्छा ही हुआ।
जो हो रहा है वह भी अच्छा ही हो रहा है। 
  जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ।
    
        अच्छा ,  अच्छा ,  अच्छा !!!
    जीवन में सकारात्मक सोच रखेंगे  
         तो सब अच्छा होगा !!!
          
             मूलमंत्र माना इसे

और अपने मन में, सोच में , व्यवहार में
         भरने की कोशिश भी की।


परन्तु हर बार कुछ ऐसा हुआ अब तक,
         कि प्रश्न किया मन ने मुझसे ,
         कभी अजीब सा मुँह बिचकाकर,
           तो कभी कन्धे उचकाकर
       "भला अब इसमें क्या अच्छा है" ?

                    क्या करूँ ?  
     कैसे बहलाऊँ इस नादान मन को ? 
       
           बहलाने भी कहाँँ देता है ?
           जब भी कुछ कहना चाहूँ ,
           ये मुझसे पहले ही कहता है,

          बस -बस अब रहने भी दे ! 
                 बहुत सुन लिया ,
                   अब बस कर !
          
            हैं विपरीत परिस्थितियां
             समझौता इनसे करने भी दे !
             अच्छा है या  फिर बुरा है,
                      जो है सच 
               उसमें जीने भी दे !

   बस ! अपनी ये सकारात्मक सोच को 
          अपने पास ही रहने दे.!
          
        फिर अपना सा मुँह लिए
           चुप रह जाती हूँ मैं
        
       अब इसमें क्या अच्छा है ?
     इस प्रश्न में कहीं खो सी जाती हूँ 

और फिर शून्य में ताकती खुदबुदाती रह जाती हूँ
                प्रश्न पर निरुत्तर सी.... ।


                                     चित्र: साभार गूगल से....

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

मेरे दीप तुम्हें जलना होगा

 
diya (candle) in dark

 है अंधियारी रात बहुत,
अब तुमको ही तम हरना होगा...
हवा का रुख भी है तूफानी, फिर भी
   मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!

मंदिम-मंदिम ही सही तुम्हें,
हर हाल में रोशन रहना होगा....
   अब आशाएं बस तुमसे ही,
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!

 तूफान सामने से गुजरे जब,
शय मिले जिधर लौ उधर झुकाना...
शुभ शान्त हवा के झोकों संग,
फिर हौले से  तुम जगमगाना !!!

अब हार नहीं लाचार नहीं
हर तिमिर तुम्हेंं हरना होगा...
उम्मीदों की बाती बनकर,
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!

राहों में अंधेरापन इतना,गर
तुम ही नहीं तो कुछ भी नहीं....
क्या पाया यों थककर हमने,
मंजिल न मिली तो कुछ भी नहीं !!!

हौसला निज मन में रखकर,
तूफ़ानों से अब लड़ना होगा ....
मन ज्योतिर्मय करने को
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!

जलने मिटने से क्या डरना,
नियति यही किस्मत भी यही....
रोशन हो जहांं कर्तव्य निभे,
अविजित तुमको रहना होगा !!!

अंधियारों में प्रज्वलित रहके
 जग ज्योतिर्मय करना होगा
तूफानो में अविचलित रह के
अब ज्योतिपुंज बनना होगा

अब आशाएं बस तुमसे ही
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!


शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

जीवन जैसी ही नदिया निरन्तर बहती जाती....

water flowing down the mountains

पहाड़ों से उद्गम, बचपन सा अल्हड़पन,
चपल, चंचल वेगवती,झरने प्रपात बनाती
अलवेली सी नदिया, इठलाती बलखाती
राह के मुश्किल रौड़ो से,कभी नहीं घबराती
काट पर्वत शिखरों को,अपनी राह बनाती
इठलाती सी बालपन में,सस्वर आगे बढ़ती
जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती....

अठखेलियां खेलते, उछलते-कूदते
पर्वतों से उतरकर,मैदानों तक पहुँचती
बचपन भी छोड़ आती पहाड़ों पर ही
यौवनावस्था में जिम्मदारियाँँ निभाती
कर्मठ बन मैदानों की उर्वरा शक्ति बढ़ाती
कहीं नहरों में बँटकर,सिंचित करती धरा को
कहीं अन्य नदियों से मिल सुन्दर संगम बनाती
अब व्यस्त हो गयी नदिया रिश्ते अनेक निभाती
जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती........

अन्नपूरित धरा होती, सिंचित होकर नदियों से
हर जीवन चेतन होता,तृषा मिटाती सदियों से,
अनवरत गतिशील प्रवृति, थामें कहाँ थम पाती है
थमती गर क्षण भर तो,विद्युत बना जाती है
परोपकार करते हुये कर्मठ जीवन अपनाती
जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती.......

वेगवती कब रुकती, आगे बढ़ना नियति है उसकी
अब और सयानी होकर, आगे पथ अपना स्वयं बनाती
छोड़ चपलता चंचलता , गंभीरता अपनाती
कहीं डेल्टा कहीं मुहाना बनाकर फर्ज निभाती
जीवन जैसी ही नदिया निरन्तर बहती जाती........

चलते चलते थक सी जाती ,वयोबृद्धा सी होकर
अल्पवेग दुबली सी सागर समीप है जाती
इहलीला का अन्त जान,भावुक सी हो जाती
अतीती सफर की मधुर स्मृति संग ले आगे बढ़ती
धीमी धीमी निशब्द सी बहकर सागर में मिलती
जैसे पंचतत्व में विलीन हो,आत्मा खो सी जाती....
जीवन जैसी ही नदिया, निरन्तर बहती जाती......

इक क्षण की विलीनता ,  पुनः  मिले नवजीवन
वाष्पित होना सागर का,पर्वत तक जाना बदरी बन
बरसना पुनः पहाड़ों पर , बहना पुनः नदिया बन
अनमोल सम्पदा जीवन की,सृष्टि चक्र का साथ निभाती
जीवन जैसी ही नदिया निरन्तर बहती जाती.......




शनिवार, 27 जनवरी 2018

मिन्नी और नन्हीं तितली



pretty girl with a butterfly in her hand
                         चित्र : साभार गूगल से

कम्प्यूटर गेम नहीं मिलने पर
मिन्नी बहुत बहुत रोई...
गुस्से से  लाल होकर वह
घर से बाहर चली गयी....
घर नहीं आउंगी चाहे जो हो,
ऐसा सोच के ऐंठ गयी,
पार्क में जाकर कुछ बड़बड़ाकर
वहीं बैंच पर बैठ गयी ।

रंग बिरंगे पंखो वाली
इक नन्हींं सी तितली आयी
पास के फूलों में वह बैठी,
कभी दूर जा मंडरायी...
नाजुक रंग बिरंगी पंखों को
खोल - बन्द कर इतरायी
थोड़ी दूर गई पल में वह
अपनी सखियों को लायी....
भाँति-भाँति की सुन्दर तितलियां
मिन्नी के मन को भायी ।

भूली मिन्नी रोना धोना,
तितली के संग संग खेली
कली फूल तितली से खुश,
वह अब कम्प्यूटर गेम भूली
मनभाते सुन्दर फूल देख,
मिन्नी खुश हो खिलखिलाई
तितली सी मंडराई वह खेली,
गालों में लाली छायी ।

साँझ हुई तो सभी तितलियाँ
दूर देश को चली गयी.....
कल फिर आना,मिलक़र खेलेंगे
बोली और ओझल हो गयी ।
खुशी-खुशी और सही समय पर
मिन्नी वापस घर आयी.....
तरो-ताजा और भली लगती थी
लाड़-प्यार सबका पायी ।

रात सुहाने सपनों में बीती
परी लोक की परियों संग...
तितलियों के संग उड़ी वह
रंगीले थे उसके भी पंख ।
भोर हुई तो जल्दी जगकर,
सभी काम वह निबटायी....
गयी विद्यालय सखियों को भी
कल की बातें बतलायी ।

घर आकर झट कुछ खा-पीकर
फट गृहकार्य वह निबटाई  ...
बाकी सखियाँ सही समय पर
मिन्नी के घर पर आई....
पार्क गये सब खुशी -खुशी
तितलियों के संग-संग दौड़े.....
खुली हवा में खेले - कूदे,
कम्प्यूटर गेम सबने छोड़े ।
प्रकृति का सानिध्य मिला
स्वस्थता तन मन में आयी....
नेत्रज्योति भी हुई सुरक्षित
विलक्षण बुद्धि सब ने पायी ।।





शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बवाल मच गया

सुन सुन कान पक गये,
     उसके तो उम्र भर....
इक लब्ज जो कहा तो बवाल मच गया !!!


झुक-झुक के ताकने की
कोशिश सभी किये थे,
घूरती नजर के बाणों से
     तन बिधे थे,
ललचायी थी निगाहें
 नजरों से चाटते थे......
घूँघट स्वयं उठाया तो बवाल मच गया !!!


अपने ही इशारों पे नचाते
     रहे सदियों से,
कठपुतली सी उसे यूँ ही घुमाते
    रहे अंगुलियोंं पे,
साधन विलास का उसे
    समझा सदा तूने
जब पाँव स्वयं थिरके तो बवाल मच गया !!!


सदा नाचते -गाते घोड़ी पे चढे़ दूल्हे
          अपने ही ब्याह में,
इस बार नच ली दुल्हन तो बवाल मच गया !!!

       







रविवार, 14 जनवरी 2018

सर्द मौसम और मैं



girl enjoying in winters snow


देखा सिकुड़ते तन को
ठिठुरते जीवन को
मन में ख्याल आया...
थोड़ा ठिठुरने का ,
थोड़ा सिकुड़ने का,
शॉल हटा लिया....
कानो से ठण्डी हवा ,
सरसराती हुई निकली,
ललकारती सी बोली ;
इसमें क्या ?
सिर्फ शॉल हटाकर,
करते मेरा मुकाबला !!
लदा है तन बोझ से,
मोटे ऊनी कपड़ो के
तुम नहीं ठिठुर सकते !
सिकुड़ना नहीं बस में तेरे !
बस फिर क्या....
मन मुकाबले को तैयार
उतार फैंके गरम कपड़े
उठा लिए हथियार....
कंटीली सी हवा तन-मन
बेधती निकली जब आर - पार
हाथ दोनों बंधकर सिकुड़े
नाक भी हुई तब लाल....
सिकुड़ने लगा तन मन 
पल में मानी हार....
लपके कपड़ों पर ज्यों ही
सर्द हवा को ठिठोली सूझी
तेजी का रूख अपनाया
फिर कपड़ो को दूर उड़ाया
आव देखा न ताव देखा
जब सामने अलाव देखा !!!
दौड़े भागे अलाव के आगे
काँप रहे थे ,बने अभागे
अलाव की गर्माहट से कुछ
जान में जान आयी....
पुनः सहज सी लगने लगी
सर्द मौसम से अपनी लड़ाई....
मन के भावों को जैसे
सर्द प्रकृति ने भांप लिया
मुझे हराने, अलाव बुझाने
फिर से मन में ठान लिया
मारुत में फिर तेजी आयी
अलाव की अग्नि भी पछतायी
अब तो धुंआ धूं - धूं करके
आँखों में घुसता जाता था
और अलाव भी गर्माहट नहीं
सिर्फ आँसू दिये जाता था......
ओह !  हार स्वीकार मुझे
क्षमा करो इस बार मुझे....
सर्द हवाओं अब थम जाओ
थोड़ी सी गर्माहट लाओ
मैं अबोध थी जो भिड़ बैठी
शक्ति हीन मैं फिर क्यों ऐंठी ???
रवि कुछ दया तुम ही कर दो
अपनी किरणों से गर्माहट भर दो !!!
हाड़ कंपाती इस ठण्डी से
कोई आकर मुझे बचाओ !!!
मन्द हवा हौले से आकर
फिर से मेरा अलाव जलाओ......

                           चित्र : साभार गूगल से....


हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...