उसके तो उम्र भर....
इक लब्ज जो कहा तो बवाल मच गया !!!
झुक-झुक के ताकने की
कोशिश सभी किये थे,
घूरती नजर के बाणों से
तन बिधे थे,
तन बिधे थे,
ललचायी थी निगाहें
नजरों से चाटते थे......
नजरों से चाटते थे......
घूँघट स्वयं उठाया तो बवाल मच गया !!!
अपने ही इशारों पे नचाते
रहे सदियों से,
कठपुतली सी उसे यूँ ही घुमाते
रहे अंगुलियोंं पे,
रहे अंगुलियोंं पे,
साधन विलास का उसे
समझा सदा तूने
समझा सदा तूने
जब पाँव स्वयं थिरके तो बवाल मच गया !!!
सदा नाचते -गाते घोड़ी पे चढे़ दूल्हे
अपने ही ब्याह में,
इस बार नच ली दुल्हन तो बवाल मच गया !!!
7 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
पाँच लिंकों का आनन्द परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
सटीक !दोहरी मानसिकता पर प्रहार करती रचना।
सच है नारी का मौन बन्ध्या रूप सभी को प्रिय है।वह तभी तक संस्कारी मानी जाती है जब तक वह अपनी पीड़ा को भीतर ही भीतर पीती रहती हैं, जैसे ही उसने होंठ खोले बवाल नहीं भूकम्प और सुनामी सारे आ जाते हैं। एक बेबाक रचना के लिये बधाई प्रिय सुधा जी ❤
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सखी !
दिल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी ! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
रचना का सार स्पष्ट करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार रेणु जी !
क्या बात है दोहरी मानसिकता पर प्रहार करेंगी तो बवाल तो मचेगा ही न☺️
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